कैमूर: भभूआ के भगवानपुर में अवैध अस्पतालों की चांदी

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स्वास्थ्य केंद्र के शिकायत के बाद भी पदाधिकारी मौन

खबर कैमूर जिले के भभूआ के भगवानपुर प्रखण्ड से है जहां भभूआ मुख्य शहर के साथ – साथ भगवानपुर प्रखण्ड मे भी अवैध अस्पताल संचालित हो रहे हैं । आप को बात दें की कुछ वर्ष पूर्व ही एक महिला की जान भगवानपुर के ही एक निजी अस्पताल में प्रसव के दौरान हो गई थी । तब आनन फानन में प्रशासन हरकत में आई भी थीं लेकिन जिस निजी अस्पताल में घटना घटित हुई थी सिर्फ उसी अस्पताल पर कारवाई कर सील किया गया था । लेकिन लगता तो यही है की प्रशासन अभी भी एक नए घटना के घटित होने के ताक में है ।

इसी क्रम में हमारी टीम भगवानपुर में अवैध रूप संचालित हो रहे अस्पतालों का जायजा लेने पहुंची जहां पता चला की एक अस्पताल जो की हिंदुस्तान पेट्रोलियम के पेट्रोल टंकी के दक्षिण तरफ पैक्स गोदाम के समीप था जहां किसी भी तरह का कोई संस्थान का बोर्ड नहीं था बल्कि अंदर जाने पर मरीजों ने बताया की डॉक्टर साहब गर्भाशय निकालने की सर्जरी कर रहे हैं और और छान-बिन करने पर पता चला की इस तरह की सर्जरी आए दिन डॉक्टर साहब करते रहते हैं और इनके पास कोई डिग्री भी नहीं है । इसके अलावे भगवानपुर में ऐसे लगभग दर्जन भर अस्पताल हैं जिनके पास न कोई डिग्री है और न ही अस्पताल खोलने का निबंधन और न ही वो कोई मानक ही पूरा कर रहे हैं ।

यहीं नहीं इस दरम्यान अस्पतालों की भीड़ में एक ऐसा भी अवैध अस्पताल दिखा जिसपर बड़ी शान से पूर्व चिकित्सा प्रभारी भगवानपुर लिखा था जैसे इनके लिए नियम और कानून ताक पर हो । साथ ही एक और अवैध अस्पताल जिला परिषद सदस्य राजू खरवार के द्वारा संचालित किया जा रहा है । ऐसे में न जाने कितने ही लोगों की जान के साथ रोज खिलवाड़ किया जा रहा है अब देखना ये है की कबतक जिला प्रशासन इस पर मौन साधे रहती है ।

इस विषय पर हमने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भगवानपुर में मौजूद चिकित्सा पदाधिकारी डॉक्टर योगेश तिवारी से बात-चीत की तो पता चला की सामुदायिक भवन कार्यालय से पूर्व में ही अवैध अस्पतालों की एक सूची दिनांक 12/10/2022 को जिला प्रशासन को भेज दी गई थी जिसमें 14 अवैध अस्पतालों को चिन्हित किया गया था जबकि एक सूची पाँच माह पूर्व भी भेजा गया है जिसमें अवैध अस्पतालों की सूची 14 से बढ़कर 22 हो गया है । सबसे बाद विषय ये है की जब भगवानपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से सूची भेजी जा चुकी है तब भी प्रशासन हाथ पे हाथ धरे क्यों बैठी है ऐसे में क्यों न दाल में कुछ काला होने की संभावनाएं लगाई जाएं ।

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