शाहाबाद डेस्क : इस्लाम मज़हब में मुहर्रम को रमजान के बाद दूसरा सबसे पाक महीना माना गया है क्योंकि इस महीने में कई महत्वपूर्ण हादसात हुई थीं. इस्लामिक कैलेंडर को हिजरी कैलेंडर के नाम से जाना जाता है, जोकि चंद्रमा पर आधारित होता है. हिजरी कैलेंडर के अनुसार यह वर्ष 1446 है.

इस्लामिक कैलेंडर चंद्र पर आधारित है.

इस्लामिक कैलेंडर चंद्रमा के अनुसार चलता है. इसलिए इसमें सूर्यास्त के बाद यानी मगरिब के समय नए तिथि की शुरुआत होती है.

हिजरी कैलेंडर में 12 चंद्र महीने होते हैं, जिसमें हर महीना 29 या 30 दिनों का होता है. इस तरह से पूरा वर्ष 354 दिनों का होता है. इसलिए हिजरी संवत सौर संवत से 11 दिनों का छोटा होता है. हालांकि इस 11 दिनों के अंतर को पूरा करने के लिए जिलहिज्ज माह में कुछ दिन जोड़ दिए जाते हैं.

कैसे हुई हिजरी कैलेंडर की शुरुआत

इस्लाम में मुहर्रम भले ही साल का पहला महीना होता है और इससे नववर्ष की शुरुआत होती है. लेकिन इसे गम, शोक और चिंतन का महीना माना जाता है. क्योंकि इसी महीने में इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों ने शहादद दे दी थी.

इस्लामिक विद्वानो के अनुसार हिजरी की शुरुआत दूसरे खलीफा हजरत उमर रजि. के समय हुई थी.

हजरत अली रजि. और हजरत उस्मान गनी रजि के कहने पर खलीफा हजरत उमर रजि ने मुहर्रम को हिजरी वर्ष का पहला माह तय किया और इसके बाद से विश्वरभर में इस्लाम धर्म को मानने वालों मुसलमानों के लिए मुहर्रम के पहले दिन को इस्लामी नव वर्ष की शुरुआत माना गया.

मुहर्रम में हुई ये विशेष घटनाए

इमाम हुसैन और 72 साथियों की शहादद: मुहर्रम महीने के 10वें दिन लोग उपवास रखते हैं. इसे आशूरा या यौम-ए-आशूरा कहा जाता है. इस्लामिक मान्यता के अनुसार मुहर्रम के 10वें दिन ही मानवता की रक्षा की लिए लड़ते हुए पैंगम्बर मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन समेत 72 साथियों ने इराक के कर्बला में शहादद दे दी थी. इसलिए मुसलमान मुहर्रम में मजलिस करते हुए इमाम हुसैन और उनके साथियों को याद करते हैं. वहीं मुहर्रम के 10वें दिन को इमाम हुस्सैन और उनके साथियों की शहादद के रूप में मनाया जाता है. इस दिन गम में लोग काले रंग के कपड़े पहनते हैं और अलग-अलग शहरों के इमामबाड़े से ताजिया का जुलूस निकाला जाता है.

पैगंबर मूसा की जीत: पैगंबर मोहम्मद साहब से पहले मुहर्रम के 10वें दिन पैगंबर मूसा ने मिस्र के फिरौन पर जीत हासिल की थी. इसलिए इनकी याद में भी मुसलमान उपवास या रोजा रखते है. इसे मुहर्रम में बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर याद किया जाता है

हिजरी कैलेंडर की शुरुआत: इस्लाम में मुहर्रम का महत्व इसलिए भी और अधिक बढ़ जाता है, क्योंकि इसी महीने से हिजरी कैलेंडर की शुरुआत होती है. माना जाता है कि दूसरे खलीफा हजरत उमर फारुख ने हिजरी कैलेंडर की शुरुआत की थी.

चुंकि हम सभी जानते है की मुहर्रम का पर्व शोक सब्र वाला पर्व है. खास कर इसे बुराई पर अच्छाई की जीत का भी पर्व माना जाता है.

इस महीने मे इस्लामी दूत हज़रत मुहम्माद के नवासे समेत उन्नीस साथी शहीद हुए थे.इसलिय खास कर भारत मे मुसलमानो का सुन्नी समुदाय इस महीना को शोक के रूप मे मनाता है.सुन्नी समुदाय ख़ास कर मुहर्रम की दस और नौ को रोज़ा रखते हैँ गरीब मिस्किन यतीम को सहयोग करते हैँ भूखो को भोजन पानी की व्यवस्था लिए साथ शरबत और खिच्चड़ा का व्यस्था करते हैँ.

तैमूर की परम्परा है ताजीयदारी

ताज़ियेदारी की परम्परा इस्लाम मज़हब की किसी भी धार्मिक किताब मे नहीं मिलता. बल्कि ताजीया निकलने की परम्परा तैमूर बदशाह के समय से प्रारम्भ हुई है. जो धीरे धीरे पुरे भारत मे एक परम्परा बन गई. दरअसल