तैमूर मूल रूप से कजाकिस्तान का था और मुस्लिमों के शिया समुदाय से ताल्लुक रखता था। ईरान, अफगानिस्तान, इराक और रूस के कुछ हिस्सों को जीतने के बाद तैमूर 1398 ईस्वी के दौरान हिंदुस्तान पहुंचा था। फिर दिल्ली के शासक मुहम्मद बिन तुगलक को हराकर खुद को शहंशाह घोषित कर दिया और दिल्ली की गद्दी पर राज करने लगा। वैसे तो तैमूर हर साल मुहर्रम मनाने के लिए इराक जाता था, लेकिन एक साल युद्ध में जख्मी होने की वजह से हकीमों ने उसे सफर करने से मना किया और इस कारण वह उस साल मुहर्रम मनाने इराक नहीं जा पाया।
तैमूर के दरबारियों ने बनाए ताजिये
तैमूर को जब हिंदुस्तान में ही मुहर्रम मनाना पड़ा तो उसके दरबारियों को अपने शहंशाह को खुश करने के लिए कुछ अलग हटकर करने के बारे में सोचा। उन्होंने इराक के कर्बला में स्थित इमाम हुसैन की कब्र जैसी कृतियां बनाने का आदेश दिया और तब शिल्पकारों ने तैयार किए ताजिये। उस वक्त बांस की खपंचियों पर कपड़ा लगाकर यह ढांचा तैयार किया गया और उसे ताजिया कहा गया। ताजियों को फूलों से सजाया गया और तैमूर के महल में रखा गया। इस तरह मुहर्रम पर हर साल ताजिया बनाने की परंपरा चल पड़ी।
पूरे देश में बनने लगे ताजिये
उसके बाद जैसे तैमूर को खुश करने के लिए पूरे देश के मुस्लिमों में होड़ सी मच गई और पूरे देश में ताजिये बनने लगे। जबकि आश्चर्य की बात यह है कि तैमूर के अपने देश उज्बेकिस्तान या कजाकिस्तान ताजिए बनाए जाने की परंपरा का कोई जिक्र नहीं मिलता। तैमूर की मृत्यु 19 फरवरी, 1405 ईस्वी में हुई थी। उसके बाद भी ताजिए का जुलूस निकालने की परंपरा चलती रही जो कि आज भी जारी है।
डीजे बजाने की परम्परा भारत मे
हम सब जानते है की भारत एक धर्म राष्ट्र देश है, इस देश मे. अनेको धर्म के लोग निवास करते है. जिनमे दो बड़े धर्म हिन्दू और मुस्लिम हैँ. हिन्दू धर्म के लोग अपना हर तहवार बड़ी ही धूमधाम से मनाते है. जहाँ काफी हर्षउल्लास का वातावरण होता है, पर्व को चार चाँद लगाने हेतु ढ़ोल नगाडो के साथ साथ बड़े बड़े डीजे और साउंड बॉक्स लगा ते है ताकि दूर द रा ज़ या घरों मे बैठी महिलाये भी तहवार का आनंद ले सके. इसलिए डीजे और साउंड लगा कर अपने पर्व का आयोजन के साथ आनंद लिए है. मुहर्रम का पर्व शांति सद्भाव सब्र और मातम का पर्व है.जहाँ शोक सन्देश वाले इस पर्व मे डीजे बजाना ख़ुशी मनाना मना है. डीजे की परम्परा हिन्दू धर्म के परवो को देखते हुए इसकी शुरुआत की गई. आज दोनों धर्मो मे डीजे के बिना पर्व अधूरा है.
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